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आदित्य श्रीवास्तव

Others

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आदित्य श्रीवास्तव

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उम्र गुज़र रही है जब

उम्र गुज़र रही है जब

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उम्र गुज़र रही है,

जबशोखियां आ रही है,

हमें ये किस शहर के रास्ते,

उम्र ले जा रही है हमें।


उतर गया है समन्द,

तो जोश कस रहे है हम,

ज़मीं पे टिकी वो कश्ती,

जो ले जा रही है हमें।


यही से जाना है,

यही पे आने के वास्ते,

जब क्या है वो सदा ए सफ़रजो,

चला रही है हमें।


लाख चाहूँ तो भी,

ये मिट्टी नहीं छोड़ेगी हमें,

कुछ सिक्को की खनक,

है की बुला रही है हमें।


बड़ा ख्वाब है इस शहरमें,

गली शायर के नाम की,

फिर वही शौक ओ फ़िज़ू,

अब तक चला रही है हमें।


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