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Suraj Kumar Sahu

Abstract

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Suraj Kumar Sahu

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रिश्ता अजीब रखता हूँ

रिश्ता अजीब रखता हूँ

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तू मुझे मत समझा कि मैं हार जाऊंगा, 

क्योंकि जीतने का हुनर भी करीब रखता हूँ, 


आज मंजिल से कोसों दूर हूँ तो क्या हुआ? 

दुनिया में कहीं औरों से बेहतर नसीब रखता हूँ, 


अमीरों को मैं चाहत की नजर से देख न सकूँ

हालात क्या मैं अपनी इतना गरीब रखता हूँ? 


जरूरत पड़ी हैं किसी की तो बस चार कदम, 

वरना रास्ता खुद बनने का तरकीब रखता हूँ, 


जो हर कदम पर नील को अजमाये बस, 

उनके साथ वही फिर रिश्ता अजीब रखता हूँ। 


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