सीमा के सीमा पार पर मुक्तक
सीमा के सीमा पार पर मुक्तक
पड़ोसी दुश्मन न होता तो खंजर न फेंकता,
अपने बर्बादी का वह कभी मंजर न देखता,
होते संबंध मधुर तो कई सीमा अपनी होती,
मुहब्बत के नाम से जमीन बंजर न देखता।
आज सचिन भले उनका जीजा बन गया,
चार बच्चों सहित जिसका वीजा बन गया,
मुहब्बत जायज हैं मगर दुश्मन देश से नहीं,
उसे मालूम न दूसरा सानिया मिर्जा बन गया।
किसी एक का गुनाह कईयों को सजा न हो,
पहले प्यार मीठा बाद में कड़वा मजा न हो,
बेशक इश्क में निकम्मे मगर ध्यान इस बात का,
दुश्मन के घर की चोरी दूसरी कोई वजह न हो।
बदला लेने के लिए मुहब्बत ही न जरूरी थी,
पबजी के चक्कर में इतनी क्या मजबूरी थी,
जिन्होंने देखा सपना हो हमारे बर्बादी का,
हमारी भलाई सिर्फ रखनी उनसे दूरी थी।
