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Suraj Kumar Sahu

Abstract

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Suraj Kumar Sahu

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सीमा के सीमा पार पर मुक्तक

सीमा के सीमा पार पर मुक्तक

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पड़ोसी दुश्मन न होता तो खंजर न फेंकता, 

अपने बर्बादी का वह कभी मंजर न देखता, 

होते संबंध मधुर तो कई सीमा अपनी होती, 

मुहब्बत के नाम से जमीन बंजर न देखता।


आज सचिन भले उनका जीजा बन गया, 

चार बच्चों सहित जिसका वीजा बन गया, 

मुहब्बत जायज हैं मगर दुश्मन देश से नहीं, 

उसे मालूम न दूसरा सानिया मिर्जा बन गया। 


किसी एक का गुनाह कईयों को सजा न हो, 

पहले प्यार मीठा बाद में कड़वा मजा न हो, 

बेशक इश्क में निकम्मे मगर ध्यान इस बात का, 

दुश्मन के घर की चोरी दूसरी कोई वजह न हो। 


बदला लेने के लिए मुहब्बत ही न जरूरी थी, 

पबजी के चक्कर में इतनी क्या मजबूरी थी, 

जिन्होंने देखा सपना हो हमारे बर्बादी का,  

हमारी भलाई सिर्फ रखनी उनसे दूरी थी। 


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