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Dr Manisha Sharma

Others

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Dr Manisha Sharma

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यादें

यादें

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जब मुस्कुराहटें घोली थीं चाय के प्यालों में

शक्कर की जगह

बतकहियों के धुएं में तापे थे जाड़े वाले हाथ

जब लम्हों में गुज़र गए थे पहर 

सूरज ने थक कर ले ली थी विदा

और चांद ने मांगी थी इज़ाज़त

पर रुकना पड़ा था उसे भी

कहीं अधूरी ना रह जाएं मुरादें

आज ढूंढ रहे हैं फिर से हमें

वो खाली प्याले, जाड़े की सर्दी ,बादलों में ढका सूरज

और दस्तक देता चांद।


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