भ्रम vs सत्य
भ्रम vs सत्य
हुई ऐसी क्या खता मुझसे,
जो मोह मेरा इस भ्रम के जगत सँग जोड़ा,
खुद ही सिखाकर प्रेम का सत्य अर्थ ,
फिर क्यों इन झूठे लोगों के बीच मुझे छोड़ा,
ऐ मेरे मुरलीधर, लगाने से पहले खुद से लगन,
क्यों नहीं तोड़ी इस जगत से मन की ये डोर,
क्यों रुकूं मैं तुमपे तब ही, जब मोकू कँऊ और न मिले ठौर?
तुमते जूरू मैं कैसे राम, कै फिर तोर कौ ना होये क़ोई भय,
ना फिर खींचे जगत की माया,
बिनती करू मैं इतनी तोते,
तू मोये खुदमे समाये लय!
