मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !
मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !
मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण
तू, इरा मदों में भर देती,
तुझको पाने का गर्व यही
तू यौवन को ही हर लेती !
छल छल करती, घट घट गिरती
तू व्याघ्र चतुर, मैं व्यग्र विभु
यह द्यूत, बड़ा ही निष्ठुर है
तू द्यूत निपुण, मैं अनायास !
मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !
मैं अभिलाषी, तू मृदु भाषी
तेरा स्वर, मदमय, सुरभाषी,
मैं आतुर, तू निर्गुण गाती
मेरा यौवन, तू हर जाती !
मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !
तू घाट घाट का पानी है
मैं गिरता पड़ता हूं, 'नहुष'
तू दूर दूर, मैं पास पास
तेरे यौवन का सन्यासी !
मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !
मधुुरा, तेरा वैभव अदम्य
तू निष्कामी है, निर्गामी,
ये मेरे तप की हार ही है
मैं बन बैठा हूं, अनुरागी !
मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !
तेरा रहस्य, तेरा यौवन
तू रक्त सरस पीती रहती,
औरों को भी जिंदा रखती
औरों पे ही ज़िंदा रहती !
मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !
