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निशान्त मिश्र

Abstract

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निशान्त मिश्र

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मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !

मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !

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मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण

तू, इरा मदों में भर देती,

तुझको पाने का गर्व यही

तू यौवन को ही हर लेती !


छल छल करती, घट घट गिरती

तू व्याघ्र चतुर, मैं व्यग्र विभु

यह द्यूत, बड़ा ही निष्ठुर है

तू द्यूत निपुण, मैं अनायास !


मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !


मैं अभिलाषी, तू मृदु भाषी

तेरा स्वर, मदमय, सुरभाषी,

मैं आतुर, तू निर्गुण गाती

मेरा यौवन, तू हर जाती !


मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !


तू घाट घाट का पानी है

मैं गिरता पड़ता हूं, 'नहुष'

तू दूर दूर, मैं पास पास

तेरे यौवन का सन्यासी !


मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !


मधुुरा, तेरा वैभव अदम्य

तू निष्कामी है, निर्गामी, 

ये मेरे तप की हार ही है

मैं बन बैठा हूं, अनुरागी !


मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !


तेरा रहस्य, तेरा यौवन

तू रक्त सरस पीती रहती,

औरों को भी जिंदा रखती

औरों पे ही ज़िंदा रहती !


मधुरा तेरा यौवन अक्षुण्ण !


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