माँ का मोह
माँ का मोह
मनभावन गीत वो लोरी भी सुनाती है
कोई और नहीं वो माँ ही गुनगुनाती है
कलम से जब भी लिखता माँ का नाम
मुस्कुराते हुए वो मुझे गले लगा लेती है
माँ की ममता, मोह बड़ी निराली होती है
कोमल हाँथों से जब मेरा सिर सहलाती है
बच्चे की जिद्द को पूरी करती वो हरदम
खिलौने देकर अपने बच्चे को बहलाती है
बिलखते बच्चे के आँसू को समेटे हुए
बच्चे की हर खुशी में शामिल हों जाती है
धन्य है वो हर माँ का दुलार, बच्चे के प्रति
उसकी खुशी के खातिर अपना भूल जाती है
कद्र करता हूँ माँ की परवरिश की मैं
अपने हिस्सें के निवाले को बच्चे को खिलाती है
याद आती है मुझे भी माँ की दिन रात
अब वो हक़ीक़त में कहां सपनो में आती है।
