STORYMIRROR

Priyank Khare

Classics

4  

Priyank Khare

Classics

माँ का मोह

माँ का मोह

1 min
24K

मनभावन गीत वो लोरी भी सुनाती है

कोई और नहीं वो माँ ही गुनगुनाती है


कलम से जब भी लिखता माँ का नाम

मुस्कुराते हुए वो मुझे गले लगा लेती है


माँ की ममता, मोह बड़ी निराली होती है

कोमल हाँथों से जब मेरा सिर सहलाती है


बच्चे की जिद्द को पूरी करती वो हरदम

खिलौने देकर अपने बच्चे को बहलाती है


बिलखते बच्चे के आँसू को समेटे हुए

बच्चे की हर खुशी में शामिल हों जाती है


धन्य है वो हर माँ का दुलार, बच्चे के प्रति

उसकी खुशी के खातिर अपना भूल जाती है


कद्र करता हूँ माँ की परवरिश की मैं

अपने हिस्सें के निवाले को बच्चे को खिलाती है


याद आती है मुझे भी माँ की दिन रात

अब वो हक़ीक़त में कहां सपनो में आती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics