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Vijay Kumar parashar "साखी"

Classics

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Classics

मां

मां

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मां तो आख़िरकार मां होती है

ख़ुदा से कम वो कहां होती है

क्या पढ़ना है, क्या लिखना है

मां तो सबकी पहली गुरु होती है


क्या अमीर की, क्या गरीब की,

मां तो सबकी पूजनीय होती है

मां तो आखिरकार मां होती है

ख़ुदा से कम वो कहां होती है


वो बड़े नादान है, इसे सताते है,

ख़ुदा से अनजान है, इसे रुलाते है,

मां तो दिखनेवाली ख़ुदा होती है

9 माह तक गर्भ में ध्यान रखती है,


अपने खून-पसीने से सींचा करती है,

मां तो पालनहार, सृजनकर्ता होती है

मां तो आख़िरकार मां होती है

ख़ुदा से कम वो कहां होती है


धरती की ख़ुदा की दया तो देखो,

बिना मोल इसकी ममता तो देखो

पूत कपूत सुने, न कपूती सुनी माता

मां तो दया का सागर होती है

बेटे के लिये दिल तक चीर देती है


उसकी खुशी के लिये,

सीने से हृदय भी निकाल देती है

पर जब भी बेटा ठोकर खाकर गिरा

मां का दिल बोल उठा,

कहीं तुझे चोट तो न लगी बेटा हीरा


मां तो मरकर भी,

बेटे की सलामती की दुआ होती है

मां तो आख़िरकार मां होती है

ख़ुदा से कम वो कहां होती है।


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