माँ ,,,तुम कितना सहती हो,,,
माँ ,,,तुम कितना सहती हो,,,
माँ, तुम कितना सहती हो
पर फिर भी उफ़्फ़ न करती हो
दर्द तो होता होगा तुमको भी
जाने कैसे सब ज़ब्त करती हो
माँ, तुम कितना सहती हो
दादी के तानों को निसदिन
भोजन के जैसे गहती हो
ननद, देवर, ससुर सब रिश्तों में
स्वयं को हरपल व्यस्त रखती हो
माँ, तुम कितना सहती हो
बाबू जी को सूर्य बना तुम
पृथ्वी-सी इर्दगिर्द फिरती हो
ज़िम्मेदारी में बच्चों के अपने
दिनऔर रात ख़र्च करती हो
माँ, तुम कितना सहती हो
बाबू जी की कड़वी बातें सुन
मुस्कान सदा सम्मुख रखती हो
बच्चों के हिस्से की डाँट भी सुन के
आँचल दुलारे के सिर रखती हो
माँ, तुम कितना सहती हो
कर्ज़ उतारूँ इस जन्म में कैसे
सेवा निष्काम तुम्हारी कर जाऊँ
जन्म यदि इस धरा पर पाऊँ
माँ गोद तुम्हारी ही महकाऊँ
माँ, तुम कितना सहती हो
माँ, तुम कितना सहती हो।