मां
मां
भूख मिटाने को बच्चों की खुद भूखी रह जाती है
सुख की नींद सुलाने को कांटों पर रात बिताती है
वो मां है जो बिना स्वार्थ अपना फर्ज निभाती है।
अंगुली पकड़कर बच्चों की चलना मां सिखाती है
भले-बुरे का भेद बता कर जीवन राह दिखाती है
वो मां है जो बिना स्वार्थ अपना फर्ज निभाती है।
धूल सने बेटे को भी मां चंदा-सूरज बतलाती है
लाख खता भले कर ले बेटा सीने से उसे लगाती है
वो मां है जो बिना स्वार्थ अपना फर्ज निभाती है।
घिर आते जब दुःख के बादल सुख की बूंदे बरसाती है
घर-आंगन में सदा ममता के मोती लुटाती है
वो मां है जो बिना स्वार्थ अपना फर्ज निभाती है।
बोती है संस्कार के बीज जीवन बगिया महकाती है
बच्चों को बनाने को लायक सारा जीवन कष्ट उठाती है
वो मां है जो बिना स्वार्थ अपना फर्ज निभाती है।
जीते जी मां, ममता का कर्ज चुकाती है
मरते-मरते भी दुआ जीने की दे जाती है।