रघुवंश को आशीष
रघुवंश को आशीष
प्रथम मास की छठवीं तिथि को,
बहुत प्रफुल्लित हो जाता है मन।
रघुकुल के वृंदावन में आती बहार,
जन्मदिवस मनाते हैं सब परिजन।
आर्यभूमि पर हो तुम अवतरित हुए,
एक शुभ संस्कृति के तुम वाहक हो।
सद्-संस्कारों के सच्चे अनुगामी हो,
नव संस्कारों के भी तो उत्पादक हो।
अनुकरणीय सदा ही तव कर्म बनें,
सदा जग हित शुभ मंगलकारी हों।
श्रेष्ठ परंपरा का ज्यों अनुगमन किया
तव अनुगामी भी इसके अधिकारी हों।
जग के दुख - तम का तुम हरण करो,
तुम सशक्त मना हो और दिव्य अंश।
हर क्षण ही आशीष हमारा तव संग है,
हो दीप्तिमान तुम हमारे प्रिय रघुवंश।