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Vivek Kumar

Abstract Classics Inspirational

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Vivek Kumar

Abstract Classics Inspirational

बदलते सामाजिक दायरे

बदलते सामाजिक दायरे

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जरुरी नहीं

कि तुम जो चाहो वही हो 

और कोई भी चाहे

पसंद -नापसंद

सबकी अलग है


समय - असमय

मौके की बात है

फिर क्यों न चले हम

अपने-अपने रास्ते

जहां न हो कभी 

भावनाओं का हस्तक्षेप


न ही बाधित हो

रिश्तों के मायने

यही तो हैं 

बदलते सामाजिक दायरे।


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