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Vivek Kumar

Abstract Others

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Vivek Kumar

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कौन हो तुम

कौन हो तुम

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कोलाहली रास्ते से, 

गुजरता है कोई, 

आहिस्ता-आहिस्ता।


गंदगी से सना हुआ, 

माथे पर कलंक लगाए, 

चलता है कोई, 

आहिस्ता-आहिस्ता।


चश्मे कानों पर

टिक नहीं रहे,

बूढ़ी आँखों से, 

देखता है कोई,

आहिस्ता-आहिस्ता।


एक दिन मैंने पूछा-

कौन हो तुम? 

तुम्हारे देश का कानून-

जवाब दिया उसने।

आहिस्ता-आहिस्ता।



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