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Vivek Kumar

Abstract Inspirational

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Vivek Kumar

Abstract Inspirational

एक मंजर ऐसा भी

एक मंजर ऐसा भी

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क्या कोई मंजर देखा या आग का समंदर देखा 

बिके जा रहे हैं लोग पैसों की आड़ में 

क्या तुमने पैसों का जादू देखा


इश्क़ की दरियाव में यूँ बहते जा रहे हैं सब 

क्या ये इश्क़ ही है, जिसमें परिवारों को भूलते देखा 

इज्ज़त क्या है आज की तारीख़ में 

क्या तुमने किसी की आबरु लूटते देखा 


चीखों की गूँज तो हर कोने में है 

क्या कभी उनकी तुमने सहायता करते देखा 

धोखों की पहाड़ चढ़े जा रहे हैं लोग 

क्या तुमने अपनों को अपनों से अलग होते देखा

 

उदासी कहाँ है आज किसी के मुख पर 

क़यामत तो देखो जैसे ईश्वर को प्यार करते देखा 

लोग पूछने पर कुछ बताते हैं कहाँ 

बहाने तो ऐसे करते हैं जैसे 

उन्होनें कुछ नहीं देखा।


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