बूंदो जैसे पल
बूंदो जैसे पल
बूंदो जैसे कुछ पल लेकर
चली थीं सागर भर लाने को
स्नेह सैलाब जो अपनों का छलका
कहाँ सक्षम थीं कुछ समेट पाने को
मन पुलकित था, आंखे छलकी थीं
बैचेन थीं मै,
छोर बीते सालो की पकड़ पाने को
वो चेहरे जो बचपन से, छूटे थे
सफेदी से थे झाँक रहे
अंश उनके अब प्रतिबिम्ब से थे
मै आतुर पीछे झाँकने को
बूंदो जैसे कुछ पल लेकर
चली थीं सागर भर लाने को
अब तृप्त सी हूँ
इन यादो से
बांधी एक पोटली यादो की
आतुर हूँ इन्हे सहेजने को
अब ये, वो अमूल्य पूंजी हैं मेरी
ताजीवन जो संग रहेगी ही
बाद जीवन के भी
मैं तत्पर
इनको संग अपने लें जाने को
ये क्षण सागर में गागर है
शब्द सक्षम कहाँ इसे व्यक्त कर पाने को
बूंदों जैसे कुछ क्षण लेकर
चली थीं सागर भर लाने को।