भाई में हुं नादान
भाई में हुं नादान
मैं हूं नादान इस रिश्ते का
तु मैदान है इस फरिश्ते का
बैठ सके तो बेठ इन भाइयों के संग में
मिल सके तो मिल भाइयों के रंग में
ना कोई इस दरिंदगी जग में
पर रह भाइयों के साथ जिंदगी के मग में
मैं हूं नादान भाई इस रिश्ते का
तू है मैदान इस फरिश्ते का ।
साथ निभाना इन भाइयों का
क्योंकि नहीं पता इनको सर्दी की रजाइयों का
तू सावन का मेहमान में भादवा का रहमान
इनका साथ रखना जजमान
क्योंकि यह है अब मेजबान
धर्मवीर की कलम से सातों जन्म से
निभाना इनका साथ सनम से
क्योंकि मैं हूं नादान इस रिश्ते का
तू है मैदान है फरिश्ते का।