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Sarita Maurya

Romance

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Sarita Maurya

Romance

‘‘वो’’

‘‘वो’’

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वो एक दिन हौले से मुझको छू गया,

एक ही झटके में मेरा जज़्ब-ए-दिल ले गया

उसने कहा कुछ भी नहीं मैं मरी क्यूॅं लाज से?

देख पाई न नज़र भर वो छिप गया अंदाज़ से

एक दिन सपने में आकर यूं ठिठोली कर गया,

बांसों के झुटपुट झुरमुटों में जीतकर मुझे ले गया

चेहरे पे थी मासूमियत, होठों पे थीं अठखेलियां

मुझको बनाकर चोर वो खुद से सिपाही बन गया

बोला सुनो फिर आऊॅंगा फिर से तुम्हें बहलाऊॅंगा,

साथ दोगी तुम ज़रा सा तो मैं तेरा हो जाऊॅंगा

प्रेमरस सागर में डूबी मैं संभल पाई नहीं,

बातें बचीं कुछ भी नहीं सखियों को बतलाईं सभी

हाय अब बिरहन अगन दिनरात डसती है मुझे

तुम न आओगे कभी ये बात चुभती है मुझे

काश फिर से लौट आये वो मेरा मासूम कान्हा,

कीकर, करीलों में छिपूं फिर भूलकर मैं दो जहां

इस बार न तोडू़ंगी वादा आ गया गर लौट वो,

मुरली मनोहर कृष्ण श्यामल, प्रेम की सौगात वो 

स्वप्न में ही फिर सही मेरे सखा बन जाओ न,

भटकी अकेली इस जहां में राह तुम दिखलाओ न।



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