घबराया सा मंदिर वाला शहर
घबराया सा मंदिर वाला शहर
झील कंकड़ी मछली और लहर तुम्हारी आँखों में
देख रहा हूँ भटकी हुई भँवर तुम्हारी आँखों में।
धूप छाँव बरसात ठण्ड हर मौसम तुम्हारी आँखों में
कुछ घबराया सा रहता हैं डर तुम्हारी आँखों में।
बारूद बाँधते बच्चे और कारतूस की खाली खोखे
घबराया सा मंदिर वाला शहर तुम्हारी आँखों में।
दहशत के बाँहों में फ़ैली देखो डोल रही हैं भीड़
ढूंढ रहा हैं अपना कोई सफर तुम्हारी आँखों में।
अंगुली के पोरों ने कर ली नाखूनों से हैं कुट्टी
और खरोचों ने ढाया हैं कहर तुम्हारी आँखों में।
खलिहानों का सोंधापन और सीवानों की चुप्पी
आते आते कहाँ खो गयी डगर तुम्हारी आँखों में।
नंगी कश्ती के कंधों पर चलो डाल दे पाल प्रिये
बढ़ जाएंगे कुछ आगे पल ठहर तुम्हारी आँखों में।

