मनायें-पन्द्रह अगस्त
मनायें-पन्द्रह अगस्त


कहीं, कोरोना की कराह, असमय मृत्यु की आह,
कहीं रोजगार की आस में भटकती राह
कहीं राम को घर मिलने की खुशी
कहीं रामलाल घर ढहने से दुखी
किसी की मस्जिद थी और रहेगी
किसी के हिन्दुत्व की धारा अविरल बहेगी
कोई राजपाट बनाने में तल्लीन है
कोई राज्य मिटाने में लीन है
साठ वर्ष के बूढ़े को नन्ही अबोध जवान दिखती है
तो वहीं धर्मान्धों की लाठी आटोवाले बूढे पर मेहरबान दिखती है
सबके अपने ईश्वर, अपनी आराधना है
देश की किसको पड़ी, व्यक्तिगत हित साधना है
किसी के लिए घर के बाहर बाढ़ की रातें सर्द हैं
किसी को रोजी-रोटी छिनने का भी दर्द है
आओ मनायें-पन्द्रह अगस्त
हमारी स्वतंत्रता का राष्ट्रीय पर्व है!