चौमासा
चौमासा
मास अषाढ़ घनन घन गरजै की नान्हीं नान्ही बुंदियन बरसें सवनवा
भादौं मां बिजुरी चमकि डेरवावे कि घर मा नहीं हैं मोरे बारे बलमवा
दादुर मोर पपीहा बोलैं, जियरा में झमकि-झमकि रस घोलैं
उड़त चिरैया सजन ढिग भीजै, तरसै मोरी चुनर बेइमनवा
मास अषाढ़..........................
बरखा की बूंदन भीजै अमरइया कि डार मां झूमैं पीले-पीले अमवा
निंबिया की डार उड़ावै निंबोली कि अंगना मां झूलैं मस्त पवनवा
तड़प-तड़प गोरी बिजुरिया चमकै एइसे मा आओ चली मोरी गुइयां
मेहंदी की महक करेजवा लै गई कुहकै कोयल जामुन बिरवा
मास अषाढ़..........................
बहु समझायों न जाओ मोरी सजनी यहि महिना सरजू के नहनवा
लहकि गिरैं खेतवन मां बूंदैं, झूमैं धान डोलै रे मोरा मनवा
घायल की गति घायल जानै बरखा बढ़ावै दरद रे सजनिया
लउटि आओ धना अपनी मड़इया जोवैं बाट तुम्हारे सजनवा
मास अषाढ़..........................
भादां झरै घोर घट काली नैनन आंसू, जरै मोरा तनवा
लिखि-लिखि चिठिया तैराई कोरी नैया कवनिउ न पहुंची तोरे ठिकनवा
अगहन लहुकि-लहुकि चले आवैं चौमासा बीता सिया रामा
बरखा जियरा मां अगन लगावै तो कउन बुझावै बताओ मोरे मनवा
मास अषाढ़..........................