कुदुआ
कुदुआ
धोरों के हम हैं जोगी यूपी के हम हैं कुदुआ
इक बात सुनो भैया अरे बात सुनो ददुआ
कोई चोर कहता हमको कहता है कोई ठलुआ
हम् बिन बुलाये आते कहीं भोज में जम जाते
अपना यही है परिचय अपना यही है जलवा,,,,,
हमरा न कोई घर है, न ही कोई ठिकाना
कहीं काल्बेलिया हैं कही जोगियों के नाना
कभी बीन बजा लेते कभी नाग नचा लेते
जब भीख भी ना मिलती भूखे ही सो भी लेते
जूठा ही जो मिल जाए हम गप्प से खाएं
खाएं नहीं तो क्या हो ये पेट बड़ा भकुआ
जाने न रुखा सुखा कहे बन जा यार कुदुआ ,,,,,
इक और है कहानी जो आपको सुनानी
कहीं ब्रह्म भोज होता पितरों को मिलता पानी
हम उनसे गए बीते अपना न कोई सानी
लूटें गया के पण्डे जीमें भी हैं परिंदे
हम सबके बाद जाते हमें लोग दुरदुराते
हम भूखे होते ज्यादा हम भूल जाते वादा
हम रोटी पे लपकते अपनों से लड़ते भिड़ते
जीते वाही सिकंदर जो पाए सबसे ज्यादा
कोई घर में न घुसता कोई पास न बिठाता
कुत्तों के साथ खाते, कुत्तों के साथ सोते
कुत्ता हमारा साथी ताज़ा शिकार लाता
क्यूँ पढ़ के हंस रहे हो हमको बताओ बबुआ
न बात कोई उल्टी न हम हैं कोई ठलुआ ,,,,,,
न सर पे कोई छानी न बच्चों पे कोई छाता
किस्सा बड़ा अजब है लेकिंन ये कड़वा सच है -
मकान तो मकान है शमशान भी नहीं है
जिस भूमि पे हम सोते अम्मा वहीं गड़ी है
बाबा का भूत आकर हमको नहीं डराता
दफनाई घर में बहना जन्मा यहीं पे ललुआ
न बात कोई उल्टी न हम हैं कोई ठलुआ ,,,,,,
अरे बात सुनो ददुआ हमें लोग कहें कुदुआ!