क्या होना चाहिये?
क्या होना चाहिये?
चलन अब नहीं रहा मिट्टी का घड़ा बनाने का
कोई नहीं ठोकता अंदर से अब घड़े को आकार देने के लिए
गुम सी हो गई है सुहावनी सोंधी सी घड़े की सुंदरता
वैसे ही जैसे कोई नहीं टोकता बच्चों को
क्योंकि उनके पास तर्क है अपनी स्वतंत्रता का
बस नहीं है तो स्वतंत्रता उपयोग करने की कला।
जैसे अनगढ़ मिट्टी को हौले हाथों से सृजन का रूप दिया जाता था
अब कोई नहीं तैयार माता-पिता बुजर्गौं की बात सुनने को
किंचित इसीलिये बंद हो गये मिट्टी के घड़े भी
अब नहीं सजतीं कसगरों, कुम्हारों की दुकानें
नहीं मिलते एक साथ दादा-दादी, चाचा-चाची
क्योंकि वर्तमान पीढ़ी को स्नेह और नसीहत नहीं
प्राइवेसी चाहिये, रिश्ते नहीं खामोशी चाहिये
आगामी पीढ़ी का क्या होगा
प्रश्न तो है, पर उत्तर नहीं
क्या चाहिये सबको पता है,
क्या होना चाहिये? पता नहीं!!!!