याद बहुत ही तुम आते हो
याद बहुत ही तुम आते हो
कहती हूँ मैं दिल की बातें, तुम भी दिल से ही सुनना;
याद बहुत ही तुम आते हो और नहीं है कुछ कहना।
मैं तो हूँ इक टूटी नौका, बीच भँवर में अटकी हूँ;
मन का चप्पू पाने खातिर मैं तो हर पल भटकी हूँ।
हे प्रिय! ये जीवन अब तो, बोझिल लगता है तुम बिन;
मन की लहर किनारा चाहे सागर ठगता है तुम बिन।
खारे पानी जैसा बनके और नहीं मुझको बहना,
याद बहुत ही तुम आते हो और नहीं है कुछ कहना।
दर्पण में मैं अक्स निहारूँ, रूप तुम्हारा दिखता है;
धूप छाँव की इस दुनिया में प्रेम हमेशा फलता है।
पागलपन की हद में देखो, मीरा कहते लोग मुझे;
राधा रानी कृष्ण तुम्हारी इश्क़ हकीकी रोग मुझे।
डोर टूटती साँसों की अब रूह "पूर्णिमा" संग रहना;
याद बहुत ही तुम आते हो और नहीं कुछ कहनाI

