बात सिर्फ इतनी सी
बात सिर्फ इतनी सी
बगिया की
शुष्क घास पर
तन्हा बैठी वह
और सामने
आँखों मैं तैरते
फूलों से नाज़ुक
किल्कारते बच्चे
बगिया का वीरान कोना
अजनबी का
वहाँ से गुजरना
आँखों का चार होना
संस्कारों की जकड़न
पहराबंद
उनमुक्त धड़कन
अचकचाए
शब्द
झुकी पलकें
जुबान खामोश
रह गया कुछ
अनसुना,अनकहा
लम्हा वो बीत गया
जीवन यूँ ही रीत गया
जान के भी
अनजान बन
कुछ
बिछुड़े ऐसा
न मिल पाये
कभी फिर
जंगल की
दो शाखों सा
आहत मन की बात
सिर्फ इतनी
तुमने पहले क्यों
न कहा
वह आदिकाल
से अकेली
वो अनंत काल
से उदास
और सामने
फूलों से नाज़ुक बच्चे
खेलते रहे