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Rajni Chhabra

Others

5.0  

Rajni Chhabra

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पथिक बादल

पथिक बादल

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एक पथिक बादल

जो ठहरा था पल भर को

मेरे आंगन पर

अपने स्नेह की शीतल छाया ले कर

समय की निष्ठुर हवाओं के साथ

न जाने ज़िंदगी के

किस मोड़ पर ठहर जाये


रह रह कर  मन में

इक कसक सी उभर आये

काश! इक मुट्ठी आसमान

मेरा भी होता


क़ैद कर लेती इसमे

उस पथिक बादल को

मेरे धूप  से सुलगते आंगन में 

संदली हवाओं का बसेरा होता



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