पथिक बादल
पथिक बादल
1 min
231
एक पथिक बादल
जो ठहरा था पल भर को
मेरे आंगन पर
अपने स्नेह की शीतल छाया ले कर
समय की निष्ठुर हवाओं के साथ
न जाने ज़िंदगी के
किस मोड़ पर ठहर जाये
रह रह कर मन में
इक कसक सी उभर आये
काश! इक मुट्ठी आसमान
मेरा भी होता
क़ैद कर लेती इसमे
उस पथिक बादल को
मेरे धूप से सुलगते आंगन में
संदली हवाओं का बसेरा होता
