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Rajni Chhabra

Others

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Rajni Chhabra

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कहाँ गए सुनहरे दिन

कहाँ गए सुनहरे दिन

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कहाँ गए सुनहरे दिन 

जब बटोही सुस्ताया करते थे 

पेड़ों की शीतल छाँव में 

कोयल कूकती थी 

अमराइयों में  

सुकून था गाँव में 


कहाँ गए संजीवनी दिन 

जब नदियाँ स्वच्छ शीतल 

जलदायिनी थी 


शुद्ध हवा में साँस लेते थे हम 

हवा ऊर्जा वाहिनी थी 


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