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ARVIND KUMAR SINGH

Romance

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ARVIND KUMAR SINGH

Romance

तोड़कर सारे बन्धन

तोड़कर सारे बन्धन

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समाज के ठेकेदारों ने तो

जुल्मी होने का काम किया

अहम की शान्ति को रीति

रिवाजों का नाम दिया


तोड़ कर सारे बंधन चले 

गली जो अपने यार की

इतिहास उठा के देखो तो

तब जीत हुई थी प्यार की


हथकड़ियों के बस में क्या

और क्या ही बेड़ी रोकेंगी

सीमाओं की बिसात कहां

जो अब वो हमको टोकेंगी


दरवाजा कोई छोड़ा नहीं

दीवारें भी सारी तोड़ दीं

दुश्मन के इसारों वाली 

सभी हवाऐं हमने मोड़ दीं


स्वछंद कहो या बेशर्मी 

मैं अपने साजन की होई

उड़के चली हूं प्रेम गली

रोक न सकेगा अब कोई।



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