आजकल
आजकल
दिल पे शक होने लगा है न जाने क्यों,
शैतानियां हद से बढ़कर ये करने लगा है आजकल।
लाख समझाने पर भी न समझे,
हरकतें कुछ ऐसी ये करने लगा है आजकल।
भरी महफ़िलों से होकर जुदा,
एकांत मे खुश ये रहने लगा है आजकल।
डूबकर किसी और के ख्यालों में,
खु़द से ही गुफ्तगूं ये करने लगा है आजकल।
न भाता था जिसे साज-ओ-श्रृंगार,
देखकर आईना संवरने ये लगा है आजकल।
सोने से जिसे न मिलती थी फुरसत,
अक्सर तन्हा रातों में ये जगने लगा है आजकल।

