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Mahendra Kumar Pradhan

Romance

4  

Mahendra Kumar Pradhan

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संदेश

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पुष्प खिले हैं अमित यहां , खिला खिला हुआ बाग

बाग में फिर वसंत आया है ,लेके ऋत अनुराग ।

तितली चूमे पुष्प पुष्प को, बांट रहा है पराग

मन की मनसा मन ही जाने मन की क्या है राग ?


प्रीत सुहानी मौसम है और हवाओं में शिहरण

आसमान की नीलिमा कांति करे चित्त का हरण ।

झूमे तितली बहारों में , खुशी में खिला खिला है चमन

मधुगीत के झंकार रागिणी से खिला है चमन में अमन ।


बाग अनुराग में खो जाने को बेताब हैं कलियां

अतः कहते हैं प्रीतभाव से " ओ प्यारी तितलियां !

हमको भी झूमना है बहारों में पास हमारे आओना

खिला दो पंखुड़ियों को हमारे,हमको भी चूम जाओ ना ।


मधुमास है प्रीतराग में भौरों तितलियों का बोलबाला है

नव नव स्वप्न में नव जवानी प्रेमभावों में मतवाला है ।

कोयल के कूक से सीने में लगती ये कैसी ज्वाला है ?

घायल जिससे हर तरुण और मतवाली हर बाला है ।


मधु चुसने कुसुमों की तितलियों को फुरसत कहां ?

पागल भौंरे ,सारे चमन में राग छेड़े हैं यहां वहां

नशा इसकी कड़क है , पीनेवालों जरा होशियार

अनुराग में चैन अमन कहां रहते हैं मेरे यार ?


उपवन को जरा रसने दो ,पुष्पों को जरा हंसने दो

जलो मत ईर्ष्या में , फूलों पर तितलियों को बसने दो ।

प्रेम के ऊपर नफ़रत को शिकंजा मत कसने दो ।

जातपात से उपर उठकर मोहब्बत को हंसने दो ।



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