संदेश
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पुष्प खिले हैं अमित यहां , खिला खिला हुआ बाग
बाग में फिर वसंत आया है ,लेके ऋत अनुराग ।
तितली चूमे पुष्प पुष्प को, बांट रहा है पराग
मन की मनसा मन ही जाने मन की क्या है राग ?
प्रीत सुहानी मौसम है और हवाओं में शिहरण
आसमान की नीलिमा कांति करे चित्त का हरण ।
झूमे तितली बहारों में , खुशी में खिला खिला है चमन
मधुगीत के झंकार रागिणी से खिला है चमन में अमन ।
बाग अनुराग में खो जाने को बेताब हैं कलियां
अतः कहते हैं प्रीतभाव से " ओ प्यारी तितलियां !
हमको भी झूमना है बहारों में पास हमारे आओना
खिला दो पंखुड़ियों को हमारे,हमको भी चूम जाओ ना ।
मधुमास है प्रीतराग में भौरों तितलियों का बोलबाला है
नव नव स्वप्न में नव जवानी प्रेमभावों में मतवाला है ।
कोयल के कूक से सीने में लगती ये कैसी ज्वाला है ?
घायल जिससे हर तरुण और मतवाली हर बाला है ।
मधु चुसने कुसुमों की तितलियों को फुरसत कहां ?
पागल भौंरे ,सारे चमन में राग छेड़े हैं यहां वहां
नशा इसकी कड़क है , पीनेवालों जरा होशियार
अनुराग में चैन अमन कहां रहते हैं मेरे यार ?
उपवन को जरा रसने दो ,पुष्पों को जरा हंसने दो
जलो मत ईर्ष्या में , फूलों पर तितलियों को बसने दो ।
प्रेम के ऊपर नफ़रत को शिकंजा मत कसने दो ।
जातपात से उपर उठकर मोहब्बत को हंसने दो ।