आंधी और ईगल
आंधी और ईगल
आंधी !
अंध कर देती है
धूल उड़ाकर
चक्रवात लाकर
जग को।
कुटीर टॉवर दीवारों को
घोंसलों को
तोड़ मरोड़ कर
पेडपौधों को
जड़ से उखाड़ कर
तम्बू फाड़कर
भयभीत कर देती है
सभी जीवों को।
आतंकित होकर
शेर भी छुप जाते हैं
गुफा में चुपचाप
विज्ञान के ढांचे
छत के नीचे
मनुष्य भी रह जाते हैं
सहमे सहमे गृहबंद चुपचाप।
सारे दिशाओं में गूंजता है
सिर्फ आंधी की दहाड़
तोड़ मरोड़ उखाड़ फाड़।
पर उसके भीषण गर्जन से
किंचित न भयभीत हो
दूर आसमान पर
आंधी को चीरकर
उड़ता रहता है ईगल
पंख फैलाकर
अपने हौंसले कर बुलंद
नज़र न किए बंद।
तूफ़ान को दे ललकार
बाजी में भर हुंकार
चीरकर आंधी सीना ,मेघ घना
मुश्किलों को निगल
दुसाहसी ईगल
अर्जुन के तीर सा सनसनाता
उड़ जाता है दूर अंबर में
बादलों के उसपार
रख खुदपर विश्वास अपार।
किसी बुढ़े पेड़ के शिखर पर
सूखी टहनी पर बैठकर
आंधी को उसकी औकात दिखा देती है।
आत्मविश्वास और बुलंद हौसलों से
आंधी को भी चीरकर
जीवन के हर मुसीबतों को हराने की
हुनर सीखा देती है।