वो गलियां
वो गलियां


वो गलियां
तेरी गलियां
जहां खिलती थी
अरमानों की कलियां
तुम्हें देखकर तुमसे मिलकर
पूरी होती थीं मन्नतें
दिल में खिलती थी
सुकून की कलियां।
उन गलियों की
वो हवा पानी
छूकर तुम्हारी
नव जवानी
जब मुझको छूकर जाती
मुझे कहां सुकून अकेला
मै दौड़े दौड़े जाती
वो गलियां जो लुभाती।
वो गलियां
तेरी गलियां
जहां तुम्हारी
मदमस्त जवानी
करती थी अठखेलियां
मुस्कान तुम्हारी
घायल करतीं
जुल्फ़ें तुम्हारी
लुभाती मुझको सैयां।
थामे थामे दिल की धड़कनें
तुम्हारी गलियों में जाना
राह तकते थे देर देर तक
तुम्हारी पनघट में जाना
बस एक झलक में
तिरछी नयना और
शरमा के मुस्करा जाना
क्या बताऊं हमको कितनी
रास आती जाने जाना।
वो गलियां
तेरी गलियां
मेरी तो जन्नत थी
ओ जाने जाना
वहां घूमना फिरना
यारों संग बस था बहाना।
हमें तो बस तुम्हारी दर्शन से
रोजाना था नहाना।
पर वक्त बदला
रि
श्ते बदली
हक मेरा खो गया
तुम्हें अपना बुलाना।
अब तो तुम्हारी दर्शन भी
सीख चुके थे मुझे जलाना।
तुम सिंदूरी बन गृहनारी
चली सजाने घर अंगना
मेरी नहीं किसी और की
हाथों में पहन ली कंगना।
अब क्या बताऊं सजना
वो जन्नत तेरी गलियां
कैसे मेरे छाती में
मारती हैं शुलियां।
बंद हो गई हैं
उन गलियों में जाना
अब रास ना आए जाना।
सिवाय दर्द दिल के
उन गलियों में अब
कुछ नहीं मिलता जाना।
जब से तुमसे रिश्ते बदली
हम ने उस जन्नत में
जाना भूला दिया।
तुम्हारी जीवन में
मुझसे कोई अब दाग न लगे
इसलिए दिल की
हर मन्नत जला दिया।
अब तो बस रास आती हैं
तुम्हारी यादों की गलियां
नैनों में तुम्हारी मुस्कान की
चूभती अठखेलियां।
अतीत के दर्पण में तुम्हारी
अभिसार की झांकियां
प्रेम के मधुशाला में बस
युगल प्रेम की झांकियां।
वो गलियां
तेरी गलियां
अब पता नहीं क्यों ?
वहां के हवा पानी में
खिलने से पहले
कुम्हल जाती हैं
मेरे अरमानों की कलियां।