शहीद
शहीद
दो दिनों का उत्सव मनाना
जश्न - ए - आजादी का ही
सबकुछ नहीं होता साहेब
देशभक्ति ,देशप्रेम और
मातृभूमि के वास्ते ।
वतन तो बलिदान मांगता है
कर्ज मातृत्व की चुकाने को
मां की आन बान शान बढ़ाने को
यदि सज्ज हो तुम धीर वीर
शहादत के रास्ते ।
मत चढ़ाओ कीमती पुष्पहार
शहीदों के मूर्तियों पर
यदि फिर न आओगे दोबारा
पूरे एक साल तक
पूछने उनकी हाल ।
बंदूक की गोलियां, संगीन की धार
रुला न पाया जिन जवानों को,
क्यों रोते हैं उनके बेजान मूरत ?
क्या सर्दी ,धूप ,तूफ़ान से परेशान हैं ?
क्या है उनके दिल का मलाल ?
झांक कर देखो तो जरा
कभी कभी पड़ोसी शहीद के घर
सकुशल तो हैं ना उनके मां बाप ?
कहीं त्योहारों में नए वस्त्र ,मिठाई के लिए
रो तो नहीं रहे हैं उनके अबोध
दिल के टुकड़े प्यारे लाल ?
उसी चौराहे पर कल जिस
विधवा औरत और जवान लड़की पर
छेड़खानी हुई ,कहीं वो उस शहीद की
बीबी और बहन तो नहीं ?
तब से चेहरा हो गया है उसका
अंगारे सम ब्रह्मलाल ।
खेद नहीं है उसके मन में
अपने जान के कुर्बानी की ।
खेद है तो देख यहां पर
भ्रष्टाचार, कालाबाजारी ,शोषण
मानवता में फैला प्रदूषण
दीमक भांति चर रहा है जो
मातृभूमि को जड़ से चेतन ।
जिसने उठाई राष्ट्र रक्षा की बीड़ा
उस शहीद आत्मा को यदि है पीड़ा
तो सोचो हमारे करम धरम
किस कीचड़ दलदल में पड़े हैं ?
मुझे तो लगता है कि हम
आजादी के अर्ध शताब्दी बाद भी
जहां के तहां खड़े हैं ।
फिर भी प्रतीक्षा है, आशा है
एक सुखद स्वस्थ सतेज़ भोर होगा ।
मानवता की झंकार बिहंगो के मुख से
गुंज,प्रशांति अमन चौं ओर होगा ।
तन मन प्रमुदित जन जन प्रफुल्लित
भारतवर्ष हर्ष उल्लास विभोर होगा ।