हिंदी
हिंदी
भाषाओं की आदि जननी
देवभाषा संस्कृत से जन्मी
शुद्ध शाश्वत भाषा है हिन्दी
देवभूमि भारतवर्ष की
सभ्यता ,साहित्य ,संस्कृति के
माथे पर है स्वाभिमान की बिंदी।
कन्याकुमारी से हिमालय तक
सब जन मन मोहे
दिलों में भाव प्रीत छंदी।
जाति जाति धर्म संप्रदाय की
विभिन्नता कर छिन्न
राष्ट्र एकता की करे संधि।
न हिंदू मुस्लिम का भेद है
न प्रांतीय भावों का छेद है
अपनाने में इस भाषा को।
पूर्ण समर्थ है रंग भरने में
कवि कोविद और भावुकों के
महत चिंतन अभिलाषा को।
माता भारती की धड़कन है
सरस मधुर यह भाषा
साहित्य चेतना के ऊर्ध्व
नवीन आलोकित आशा।
संस्कृति के मान सरोवर से
निकली हिंदी भाषा मंदाकिनी
सींच सींच जन मन को हुई
साहित्य सिंधुगामिनी।
हिन्द का स्पंदन है हिन्दी
राष्ट्र का मान सम्मान भी
इसका विकास देश प्रेम हमारा
यही गर्व भी अभिमान भी।