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Dr.Pratik Prabhakar

Romance

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Dr.Pratik Prabhakar

Romance

आ जाओ प्रिये

आ जाओ प्रिये

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अब ज़िस्म बेज़ान हुआ जाता

न कोई सुहाता, न कोई भाता

आ भी जाओ प्रिये, शाम जाती

मादक नशा है, मेरे पर छाता।


बुलाया कई बार तुम्हें मचलते

शमाँ बिना हूँ  परिंदा  जलते

बियावां भी पुकारते है थका

क्या कहूँ, क्या है हमारा नाता।


साँसें रूह को छोड़ने को तैयार

अब बस करो, न होता इंतेजार

बैठा खुद को सहारा दिए खुद

जो तेरे साथ अब भी नहीं पता।


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