गुलाब
गुलाब
वो रोज रोज़ गुलाब भेजता था मुझे,
कहता था इश्क है कबूल कर लो मुझे।
फूल देखो मेरे और फ़िर तुम बोलो,
अपनी चाहत का सरताज बना लो मुझे।
लाल, पीले, गुलाबी, गुलाबों संग वो शख्स,
चाहत का प्यार भरा पैगाम भेजता था मुझे।
कितनी सुन्दर है जिन्दगानी कहता था वो,
दिल के जज़्बात फूलों में भेजता था मुझे।
गुलाब की तरह महकती रहो तुम सदा,
तुम महकता गुलाब हो कहता था मुझे।
शायर था कोई अजनबी नया नया,
अपनी लफ़्ज़ों में पिरोता था मुझे।
तमाम गुलाब बिछाए मेरी राहों में,
मोहब्बत भरी नजरों से देखता था मुझे।
हम कैसे कबूल करते उसकी मोहब्बत,
ख्वाब था पत्तियों सा बिखरा गया मुझे।
फूल फिर आपकी जानिब से मुख़ातिब है इधर,
अब इश्क़ जो तुमसे है तो वो क्या बोलता मुझे।
उसके इश्क की शबनमी बूंदें महसूस की ‘राज’ ने
दिन में भी आने लगे अब उसके ख्वाब मुझे।।

