जब भी बसंत आता है
जब भी बसंत आता है
ऋतु ने जो छेड़ी सरगम
झनझनाऐ दिल के तार,
हर फूल पे छाई जवानी
लो आ गई बसंत बहार।
पीहू गाता पपीहा जो,
दिल में आग लगाऐ,
बैरन ऋतु आई अकेली
कैसे मेरे दिल को भाऐ।
मैं तो कहूँ चल जा री
छोड़ के मुझको अकेली,
बसंत आई बिन साजन
मैं न बनूँगी तेरी सहेली।
वियोग साजन का मुझे
हर घड़ी सताऐ जाता है,
मैं टूट के बिखर जाती हूँ
जब भी बसंत आता है।

