देश प्रेम का रंग
देश प्रेम का रंग
मोहे देश प्रेम का रंग डारो,
आओ भारत मां के प्यारों।
आओ मेरे संग हुरियारों,
मोहे देश प्रेम का रंग डारो ।।
मन मेरा सनातन केसरिया,
तन वसन श्वेत खादी बढ़िया,
जीवन हरा-भरा रंग सांवरिया,
नफरत का न भाये रंग कारो ।।
मोहे ..
मेरे देश में होली प्रेम पर्व,
गले अरि को लगाते हम सगर्व।
पर आस्तीनों में छुपे हुए,
फन कुचल कुचल के भुजंग मारो।।
मोहे..
गौरी को खदेड़ा बार-बार,
किया पीछा, न पीछे से प्रहार।
गौरी गजनी की क्या बिसात?
बेड़ा गर्क कियो जयचंद म्हारो।।
मोहे..
पशुओं की बलि त्योहारों पर,
क्रूरता क्यों मूंक वेचारों पर?
पशु प्रेम यहां संस्कृति रही,
जल्लीकट्टू का ढंग न्यारो ।।
मोहे..
खेतों में सरसों लहराई,
महकी खुशबू से अमराई।
लेती अंगड़ाई तरुणाई,
पकड़ो पकड़ो तन रंग डारो।।
मोहे....
सुनो लाल किले के हुड़दंगी,
सड़कों पर बैठे बहुरंगी ।
शाहीन बाग के सत्संगी,
प्रेम रंग में न भंग डालो।।
मोहे ..