फागुन आया
फागुन आया
मुस्काया मन, हर्षाया तन, जन-जन, वन-वन वौराया,
देखो फिर फागुन आया ।।
सज-धज कर,बतलाती हंसकर,अल्हड़ चलती इठलाती,
हुआ क्या तुझे अरे बावरी, क्यों मन ही मन मुस्काती?
कौन नशा नस-नस में छाया,किसने यौवन बहकाया?
देखो फिर फागुन आया ।।
क्यों कंदर्प लिए कर सायक,कण-कण में छुपकर बैठा?
भोला-भाला भ्रमर भला किसका पराग पीकर ऐंठा?
कलियों ने मकरंद लुटाया,अलियों ने गुनगुन गाया।।
देखो फिर फागुन आया।।
सर सर सर समीर सूर्योदय का मन में सिहरन भरता,
रंग बिरंगा आनन, जन, कानन, बागन का मन हरता।
कण-कण में है प्रणय समाया,तन-मन-जीवन महकाया।
देखो फिर फागुन आया ।।