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Hari Shukla

Romance

4  

Hari Shukla

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जीवन महकने लगा

जीवन महकने लगा

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तन बहकने लगा, मन बहकने लगा,

आया फागुन तो जीवन महकने लगा।

खग चहकने लगा, जग चमकने लगा,

देखा मधु ऋतु तो यौवन हुमगने लगा।


नौकरी पर गए, बावरी कर गए

मन के अरमान एक-एक कर मर गए।

अश्रु जमते गए, बर्फ बनते गए,

आंच फागुन से हिमनद पिघलने लगा।।


फूली बगिया को छूकर हवा जब चली,

फूल लहराए, हंसने लगी हर कली।

टोली भंवरों की आई बड़ी मनचली,

झुंड कोकिल का कूं कूं कुंहुंकने लगा।।


कूंच महुआ गए, बौर लसिया गए,

खेत रसिया गए, छीन हंसिया गए।

सरसों की, कान की बालियां बज उठी,

देख बरजोरी कंगन खनकने लगा।।


गोरे गालों पे गुलाल जो छू गया,

गोरी के जिस्मो- जां पर वो जादू भया।

डर से, घर में भगी नारि जो मुंहलगी,

पीछे पिचकारी से रंग बरसने लगा।।


शीत ऋतु क्या गयी, प्रीति ऋतु आ गयी,

ख्वाबों में रात फिर आज तू आ गई।

अबकी तोरी में रंग दूंगा कोरी चुनर,

सोचकर मन मयूरा मचलने लगा।। 


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