गज़ल
गज़ल
ज़िन्दा रहूँ हर दौर में इतनी तमन्ना हैं
गांधी-सा होऊ, वो जज़्बा किससे उधार लूँ !
ज़िंदगी बेहद तंग गलियों से गुजरी है
कुम्लायी गलिया, धूप कहाँ से उधार लूँ !
ख्वाबों की बस उम्र, बदलती ख्वाब नहीं
ख्वाब बाकी, पर ज़िंदगी कैसे उधार लूँ !
बेवजह अब मुस्कुराया नहीं जाता
मुस्कुराहटें भला कब तक उधार लूँ !
