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Prem Bajaj

Classics

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Prem Bajaj

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आकाशदीप

आकाशदीप

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जैसे आकाशदीप आकाश में फैलाता उजियारा,

यूं रौशन कर सकता है इन्सान फैलाकर अपने ज्ञान का उजियारा, 


शुद्ध, स्वस्थ संस्कार हो मिले बेटे को जब बन चमकेगा आकाशदीप,

हों लाख चाहे बुराई के बादल, फाड़ कर उन बादलों को अपनी चमक दिखाएगा आकाशदीप,


हर पर्वत से टकरा कर‌ के ठंडक की बरखा बरसाएगा आकाशदीप,

संस्कारों से जो होगा ओत-प्रोत औरों को भी सही राह वो दिखाएगा आकाशदीप,


एक से मिलकर एक फिर बनेगी लड़ी आकाशदीपों की,

संसार को अपनी अच्छाइयों से चमकाएगी लड़ी आकाशदीपों की,


चाॅंद -सूरज सी रौशनी फैलाएंगे जब एक से अनेक मिल जाएंगे आकाशदीप,

ग़र चाहते हो उजला दिखना आकाशदीप सा बेटे को,

न ढूंढ़ो ग़ैर की बेटी में कमी, भरपूर दो संस्कार बेटे को,


जैसे लेकर रौशनी चाॅंद से चमकता है तारा आकाशदीप कहलाता है,

करता ग्रहण जो संस्कार बुजुर्गो के अपने नूर के बल पर वो आकाशदीप बन छा जाता है,


है इल्तज़ा बस इतनी सी हे ईश्वर हर घर का चिराग बन आकाशदीप जगमगाए,

जैसे एक छोटा सा दीया मिटा देता तम को उस तरह अपनी रौशनी ये चारों ओर फैलाए।



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