श्रीमद्भागवत-२२०; यज्ञ पत्नियों पर कृपा
श्रीमद्भागवत-२२०; यज्ञ पत्नियों पर कृपा
गवालबालों ने कहा, बलराम जी
पराक्रमी हो, तुम बड़े
और हमारे श्यामसुंदर ! संहार किया
बड़े बड़े दुष्टों का तुमने।
यह भूख जो हमें सता रही
इसका भी कोई उपाय करो
शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
गवालबालों ने जब ये कहा तो।
श्री कृष्ण ने मथुरा की
ब्राह्मण पत्नियों पर अनुग्रह करने को
जो उनकी उत्तम भक्त थीं
कहा था ये गवालबालों को।
यहाँ से थोड़ी दूरी पर
वेदवादी ब्राह्मण यज्ञ कर रहे
आंगिरस नाम इस यज्ञ का
करें इसे वे स्वर्ग की कामना से।
यज्ञ शाला में उनकी तुम जाओ
नाम लेना, मेरा और बलराम का
थोड़ा सा भात माँगना उनसे
गवालबाल मान कृष्ण की आज्ञा।
ब्राह्मणों के पास पहुँच गए
अन्न माँगा उनसे और कहा
हम व्रज के गवाले हैं और
थोड़ी दूर पर कृष्ण और बलराम वहाँ।
इस समय है भूख लगी उन्हें
और वे चाहते हैं कि
आप सब पूज्य ब्राह्मण दे दें
थोड़ा सा भात उनके लिए।
भगवान अन्न माँगें, सुनकर भी
ब्राह्मणों ने कोई ध्यान ना दिया
चाहते थे वे स्वर्गआदि तुच्छ फल
मन कर्मों में उलझा हुआ।
ज्ञान की दृष्टि से बालक ही थे वो
अपने को बड़ा ज्ञानवृद्ध मानते
परब्रह्म भगवान कृष्ण स्वयं उनसे
ग्वालों के द्वारा भात माँग रहे।
परंतु उन मूर्खों को जो
अपने को शरीर ही मान बैठे थे
साधारण पुरुष माना भगवान को
सम्मान ना किया उनका उन्होंने।
ब्राह्मणों ने जब कुछ ना दिया
गवालबालों की आस टूट गयी
लौट आए वो यज्ञशाला से
कृष्ण, बलराम से सारी बात कही।
भगवान कृष्ण हंसने लगे सुनकर
ग्वालों को समझाया उन्होंने
असफलता बार बार होती है
निराश नहीं होना चाहिए उससे।
बार बार प्रयत्न करो तो
सफलता आखिर मिल ही जाती
उनकी पत्नियों के पास जाओ अब
ये बात तुम मानो मेरी।
राम और श्याम यहाँ आये हैं, कहना
जितना चाहोगे भोजन दे देंगीं वे
वे मुझे बड़ा प्रेम करें
उनका मन सदा लगा रहता मुझमें।
ग्वाले तब पत्निशाला में गए
द्विजपत्नियों को प्रणाम कर बोले
थोड़ी दूरी पर कृष्ण आये हैं
और भूख भी लगी है उन्हें।
ग्वालबाल और बलराम भी संग हैं
कुछ भोजन दें, आप उनके लिए
हे परीक्षित, उन ब्राह्मण पत्नियों ने
सुन रखी श्री कृष्ण की लीलाएं।
श्री कृष्ण के दर्शन के लिए
उत्सुक रहती थीं बहुत वे
बड़ी ही उतावली हो गयीं
आने की बात सुनकर कृष्ण के।
अत्यंत स्वादिष्ट भोजन ले लिया
उन्होंने बर्तनों में अपने
परिजनों के रोकने पर भी
निकल पड़ीं थीं वो घर से।
कृष्ण को मिलने की थी लालसा
वहां जाकर फिर उन्होंने देखा
ग्वालबालों के साथ घिरे हुए
कृष्ण, बलराम जी घूम रहे वहां।
कृष्ण के सांवले शरीर पर
सुनहरा पीतांबर झिलमिला रहा
गले में वनमाला लटक रही
मस्तक पर मुकुट था, मोर पंख था।
मंद मंद मुस्कुरा रहे वो
नेत्रों से ब्राह्मणपत्नियों ने
कृष्ण को अपने भीतर ले लिया
मन ही मन आलिंगन करें वे।
सबके ह्रदय की बात जानते
भगवान् साक्षी सबकी बुद्धि के
मेरे दर्शन को सब छोड़ आईं हैं
जब ये देखा उन्होंने।
उन्होंने ब्राह्मणपत्नियों से कहा
महाभाग्यवति देविओ
प्रियतम के समान प्रेम करते मुझे
संसार में बुद्धिमान हैं जो।
अभिनंदन करता मैं तुम्हारे प्रेम का
दर्शन तो तुम सब कर चुकी मेरा
यज्ञ शाला में लौट जाओ अब
पतियों के साथ करो यज्ञ पूरा।
ब्राह्मणपत्नियाँ कहें, श्यामसुंदर ये
बात निष्ठुरता से परिपूर्ण है
भगवान् को प्राप्त कर, संसार में
लौटना ना पड़े , श्रुतियाँ कहती हैं।
वेदवाणी सत्य कीजिये अपनी
हम आपके चरणों में आयीं
उलंघन किया हमने आज्ञा का
अपने समस्त भाई बंधुओं की।
अब हमारे पति, पुत्र, माता, पिता
स्वीकार नहीं करेंगे हमें
आप ऐसी व्यवस्था कीजिये कि
दुसरे के शरण में हमें न जाना पड़े।
भगवान् कृष्ण ने कहा, देवियो
भाई बंधू जो हैं तुम्हारे
पति, पुत्र, माता, पिता सब
तिरस्कार तुम्हारा न करें।
उनकी तो बात ही क्या है
सारा संसार सम्मान करेगा
तुम अब मुझसे युक्त हो गयी
देखो, अनुमोदन कर रहे देवता।
अपना मन अब मुझमें लगा दो
शीघ्र ही प्राप्ति होगी मेरी
श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
ये सुन सब यज्ञ शाला में लौट गयीं।
यज्ञ पूरा किया पतियों के संग
पर एक पत्नी को पहले ही पति ने
बलपूर्वक रोक रखा था
इसपर उस ब्राह्मण पत्नी ने।
भगवान् के उस स्वरुप का ध्यान किया
जैसा कई दिनों से सुन रखा था
मन ही मन आलिंगन कर उनका
अपने शरीर को छोड़ दिया था।
भगवान् की सन्निधि प्राप्त की
दिव्य शरीर तब पाया उसने
इधर ग्वालबालों के साथ में
लाया हुआ भोजन किया कृष्ण ने।
श्री कृष्ण स्वयं ही भगवान् हैं
ब्राह्मणों को जब मालूम हुआ ये
पछतावा उन्हें बहुत हुआ
अपनी ही निंदा करने लगे।
उन्होंने सोचा, कृष्ण और बलराम की
आज्ञा का उलंघन करके
हमने बड़ा अपराध किया है
इसके लिए धिकार है हमें।
ऊँचे वंश में जन्म लिया और
निपुण हम हैं कर्मकांड में
परन्तु भगवान् की माया बड़े बड़े
योगियों को भी मोहित करे।
देखो, यद्यपि ये स्त्रियां हैं
अगाध प्रेम इनका भगवान् में
उसीसे गृहस्थी की फाँसी काट ली
मृत्यु के साथ भी जो न कटे।
न तो योग्य संस्कार हुए इनके
ना गुरुकुल में ही निवास किया
न इन्होने तपस्या की और न
आत्मा के सम्बन्ध में कुछ विवेक विचार किया।
उनकी बात तो दूर ही रही
न इनमें पवित्रता, ना इनमें शुभकर्म ही
फिर भी योगेश्वर कृष्ण से
दृढ प्रेम ये हैं करतीं।
हमने अपने संस्कार किये हैं
गुरुकुल में भी निवास किया
तपस्या की, आत्मानुसंधान किया
निर्वाह किया है पवित्रता का।
और भी अच्छे काम किया हमने
फिर भी भगवान् के चरणों में प्रेम नहीं
ग्वालबालों को भेज भगवान् ने
चेतावनी उनके वचनों से हमें दी।
स्वयं लक्ष्मी सेवा करती जिनके
चरणों का स्पर्श पाने के लिए
वे ही प्रभु भोजन के लिए
याचना क्यों करें किसी से।
उनकी माया नहीं तो ये क्या है
भगवान् योगेश्वर हैं विष्णु यही
यदुवंश में अवतीर्ण हुए
श्री कृष्ण के रूप में ही।
हमारे ये अहोभाग्य हैं कि
हमें ऐसी पत्नियां मिलीं
जिनकी भक्ति से हमारी बुद्धि भी
कृष्ण के प्रेम से युक्त हो गयी।
उनकी माया से मोहित हो रही
हमारी ये बुद्धि पहले तो
आदिपुरुष भगवान् क्षमा करें
इसलिए हमारे अपराध को।
ब्राह्मणों ने कृष्ण का तिरस्कार किया था
इससे पश्चाताप हुआ उन्हें
इच्छा मन में कृष्ण के दर्शन की
पर कंस के डर से वहां जा न सके।
