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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -१९५ ;अनु, द्रह्यु, तुर्वसु और यदु वंश का वर्णन

श्रीमद्भागवत -१९५ ;अनु, द्रह्यु, तुर्वसु और यदु वंश का वर्णन

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित 

तीन पुत्र हुए ययाति नन्दन अनु के 

सभानर, चक्षु और परोक्ष 

उन तीनों के नाम थे। 


सभानर का कालनर, उसका सृंजय 

सृंजय का जनमेजय,महाशील उसके 

महाशील के महामना हुए 

महामना के दो पुत्र हुए। 


उशीनर और तितिक्षुनाम उनके 

उशीनर के चार पुत्र हुए 

शिवि, वन, शमी और दक्ष 

ये उन चारों के नाम थे। 


शिवि के चार पुत्र हुए 

बृषादर्भ, सुवीर,मद्र और कैकेय 

उशीनर के भाई तितिक्षु के रूशद्रथ 

 हेम पुत्र हुए रूशद्रथ के। 


हेम के सुतपा, उसके बलि हुए 

दीर्घतमा ने बलि की पत्नी से 

अंग, वंग, कलिंग, सुह्य, पुंड्र, अंघ्र  

ये छ पुत्र उत्पन्न किये थे। 


छ देश बनाये इन्होने 

अपने अपने नाम के पूर्व दिशा में 

अंग के पुत्र ख़नपान हुए 

दिविरथ हुए ख़नपान के। 


दिविरथ का धर्मरथ, धर्मरथ का चित्ररथ 

रोमपाद नाम से ये प्रसिद्ध था 

अयोधया के महाराज जो 

दशरथ का ये मित्र था। 


रोमपाद को कोई संतान न थी 

इसलिए दशरथ ने उन्हें 

अपनी कन्या शान्ता गोद दे दी 

विवाह हुआ उसका शृष्यशृंग मुनि से। 


शृष्यश्रृंग विभाण्डक ऋषि द्वारा  

हरिणी के गर्भ से पैदा हुए वे 

एक बार वर्षा न हुई 

कई दिनों तक रोमपद के राज्य में। 


गणिकाएं शृष्यश्रृंग मुनि को 

फिर वहां पर ले आईं थीं 

शृष्यश्रृंग मुनि के आते ही 

वहां पर थी वर्षा हो गयी। 


इंद्र का यज्ञ कराया उन्होंने 

तब पुत्र हुआ संतानहीन राजा को 

उन्ही के प्रयत्न से चारों पुत्र 

प्राप्त हुए थे दशरथ को। 


चतुरंग रोमपाद का पुत्र 

पृथुलाक्ष पुत्र हुए चतुरंग के 

बृहद्रथ, बृहत्कर्मा,बृहद्भानु 

तीन पुत्र पृथुलाक्ष के ये। 


बृहद्रथ का पुत्र बृहन्मना 

बृहन्मना के जयद्रथ हुए 

जयद्रथ की पत्नी सम्भूति 

विजय है उसके गर्भ से। 


विनय का धृति, उसका धृतव्रत 

उसका सतकर्मा, अधिरथ उसका 

अधिरथ के संतान न कोई 

एक दिन गंगा तट पर वो बैठा। 


उसने देखा पिटारी में नन्हा सा 

शिशु एक बहा चला जा रहा 

वह बालक कर्ण नाम का 

कुंती ने उसे बहा दिया था। 


कन्या अवस्था में कुंती के हुआ वो 

पुत्र बना लिया उसे अधिरथ ने 

परीक्षित इसी राजा कर्ण के 

बृषसेन पुत्र हुए थे। 


ययाति के पुत्र द्रुह्यु के बभ्रु हुआ 

बभ्रु का सेतु, आरब्ध सेतु का 

आरब्ध का गांधार, उसका धर्म 

धर्म का धृत, दुर्मना था उसका। 


दुर्मना का पुत्र प्रचेता 

प्रचेता के सौ पुत्र हुए 

ये सब राजा हुए थे 

मलेच्छों के उत्तर दिशा में। 


ययाति के पुत्र तुर्वसु का वहिन 

वहिन का भर्ग, भानुमान भर्ग के 

भानुमान का त्रिमान हुआ 

उदारबुद्धि करन्धम त्रिमान के। 


करन्धम का पुत्र मरुत हुआ 

संतान नहीं थी मरुत के 

पुरुवंशी दुष्यंत को अपना 

पुत्र बना रखा था उसने। 


परन्तु दुष्यंत राज्य की कामना से 

लौट गए अपने ही वंश में 

अब सुनो वंश के बारे मैं 

ययाति के बड़े बेटे यदु के। 


परीक्षित, यदु का वंश ये 

परम पवित्र है, और इसमें 

स्वयं परब्रह्म भगवान् कृष्ण ने 

अवतार लिया मनुष्य के रूप में। 


सहस्रजित, कोष्टा, नल और रिपु 

चार पुत्र थे यदु के 

 सहस्रजित के शताजित हुए 

शताजित के तीन पुत्र थे। 


 महाहय, वेणुहय, हैहय नाम उनका 

 हैहय का धर्म, नेत्र धर्म का 

नेत्र का कुंती, सोहंजि कुंती का 

महिष्मान पुत्र था उनका। 


महिष्मान से भद्रसेन हुआ 

भद्रसेन के दो पुत्र थे 

दुर्मद और धनक नाम उनका 

धनक के चार पुत्र हुए। 


कृतवीर्य, कृताग्नि, कृतवर्मा और कृतौजा  

कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था 

और वह एक छत्र सम्राट था 

पृथ्वी के सातों द्वीपों का। 


दत्तात्रेय जी से योगविद्या और 

बड़ी बड़ी सिद्धियां प्राप्त कर उसने 

पचासी हजार वर्ष भोग किया था 

विषयों का छहो इन्द्रियों से। 


इसी बीच क्षीण न हुआ 

उसके शरीर का बल था जो 

न ही उसके धन का नाश हुआ 

इतना प्रभावशाली था वो। 


कि उसके स्मरण से दूसरों का 

मिल जाता था खोया हुआ धन भी 

उसके हजारों पुत्रों में से 

जीवित रहे केवल पांच ही। 


शेष सब भस्म हो गए 

परशुराम की क्रोधाग्नि में 

जयध्वज, शूरसेन, बृषभ, मधु और ऊर्जित  

ये उन पुत्रों के नाम थे। 


 जयध्वज के पुत्र तालजंघ थे 

तालजंघ के सौ पुत्र थे 

राजा सागर ने संहार किया था 

उनका महर्षि और्व की शक्ति से। 


उन्हीं में सबसे बड़े वीतिहोत्र 

वीतिहोत्र के यदु हुआ था 

यदु के भी सौ पुत्र थे 

वृष्णि उनमें सबसे बड़ा था। 


मधु, वृष्णि और यदु ये 

इन्ही तीनों के कारण से 

यह वंश प्रसिद्द हुआ था 

माधव, वार्ष्णेय और यादव के नाम से। 


यदुनंदन क्रोष्टु के पुत्र 

वृजिनवान नाम था उनका 

वृजिनवान का पुत्र शवाहि 

 रूशेकु शवाहि का पुत्र था। 


 रूशेकु के चित्ररथ पुत्र हुआ 

उसका पुत्र शशविन्द था 

परमयोगी अत्यंत पराक्रमी वो 

चौदह रत्नों का स्वामी था। 


युद्ध में अजय था वो 

दस हजार पत्नियां थी उसकी 

हर एक के लाख लाख संतानें हुईं 

सौ करोड़ संतानें उसकी। 


पृथुश्रवा आदि छ पुत्र 

प्रधान थे उन सब पुत्रों में 

पृथुश्रवा के पुत्र का नाम धर्म 

 उशना पुत्र थे धर्म के। 


सौ अश्वमेघ यज्ञ किये उसने 

उसका पुत्र रूचक नाम के 

पूरूजित, रुक्म, रुक्मेश, पृथु, ज्यामघ 

उसके पांच पुत्र हुए थे। 


ज्यामघ की पत्नी शैब्या 

ज्यामघ के संतान न थी कोई 

किन्तु उसने पत्नी के भय से 

दूसरा विवाह भी किया नहीं। 


एक बार शत्रु के घर से 

भोज्य नाम की कन्या हर लाया वो 

पत्नी शैब्या ने रथ पर देखा उसे 

तब चिढ़कर बोली वो पति को। 


मेरे बैठने की जगह पर 

किसे बैठा कर ला रहे हो 

ज्यामघ ने कहा, पुत्रवधु 

है तुम्हारी ये कन्या तो। 


 शैब्या ने मुस्कुराकर पति से कहा 

बाँझ हूँ मैं तो जन्म से ही 

फिर मेरी पुत्रवधु कैसे ये 

मेरी तो कोई सौत भी नहीं। 


ज्यामघ ने कहा कि रानी 

पुत्र जो होगा तुम्हारे 

उसकी यह पत्नी बनेगी 

अनुमोदन किया विशवदेव और पितरों ने। 


समयपर शैब्या के गर्भ से 

सुंदर बालक उत्पन्न हुआ था 

 नाम विदर्भ था उसका, उसीसे 

भोज्य का विवाह हुआ था। 


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