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Ajay Singla

Classics

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श्रीमद्भागवत -५७; स्वयम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन

श्रीमद्भागवत -५७; स्वयम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन

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मैत्रेय जी बताएं विदुर जी को तब 

मनु की संतानों के बारे में 

प्रियव्रत, उत्तानपाद दो पुत्र थे 

और उनकी तीन कन्याएं। 


आकूति, देवहूतो, प्रसूति ये तीनों 

आकूति का विवाह हुआ प्रजापति रूचि से 

अनन्य चिंतन प्रभु का रूचि करते 

ब्रह्मतेज से वो संपन्न थे। 


उन्होंने आकूति के गर्भ से 

पैदा किया जोड़ा स्त्री पुरुष का 

पुरुष यज्ञस्वरुप विष्णु थे 

स्त्री दक्षिणा, अंश लक्ष्मी का। 


पुरुष को मनु अपने घर ले गए 

पास रखा दक्षिणा को रूचि ने 

जब दक्षिणा विवाह योग्य हुई 

विवाह हुआ भगवान यज्ञ पुरुष से। 


फिर दोनों की संतानें हुईं 

बारह पुत्र उत्पन्न हुए उनसे 

तुषित नाम के देवता हुए सब 

उस स्वयंभुव मन्वन्तर में। 


दूसरी कन्या देवहूति का 

विवाह कर्दम मुनि से हुआ 

तीसरी कन्या प्रसूति का विवाह 

दक्ष प्रजापति से कर दिया। 


मैत्रेय जी कहें, विदुर जी मैं अब 

कर्दम जी की कन्याओं का 

उनकी सब संतानों का हाल कहूँ 

वर्णन करूं मैं उनके वंश का। 


कला, मरीचि ऋषि की पत्नी से 

कश्यप और पूर्णिमा दो पुत्र हुए 

ये सारा जगत भर गया 

आगे फिर उनके वंश से। 


पूर्णिमा के दो पुत्र थे 

विरज और विशवग नाम थे उनके 

देवकुल्या नाम की कन्या थी 

जो नदी गंगा हुई दुसरे जन्म में। 


अत्रि की पत्नी अनुसूया से 

तीन परम तपस्वी पुत्र हुए 

दत्तात्रेय, दुर्वासा और चन्द्रमाँ 

अंश ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के। 


विदुर पूछें हे मैत्रेय जी 

इन तीनों भगवानों ने 

अत्रि मुनि के यहाँ किस कारण 

क्यों अवतार लिया उन्होंने। 


मैत्रेय जी कहें कि जब ब्रह्मा जी 

सृष्टि उत्पन्न करने को बोलें 

तब पत्नी के साथ ऋषि अत्रि 

ऋक्ष पर्वत पर चले गए। 


वहां जाकर वो सौ वर्ष तक 

एक पैर पर खड़े हो तप करें 

कहें ' सम्पूर्ण जगत के ईश्वर 

अपने समान संतान प्रदान करें '। 


प्रसन्न हो गए तीनों देव तब 

ब्रह्मा, विष्णु और महादेव जी 

उनके आश्रम में पधारे 

दंडवत करें उनको ऋषि अत्रि। 


स्तुति करें उनकी और पूछें 

जिन भगवान् का चिंतन किया मैंने 

आप तीनों में वो कौन हैं 

सम्पूर्ण जगत के जो ईश्वर हैं। 


तीनों हसें और कहा अत्रि से 

जगदीश्वर जिनका ध्यान तुम करते 

हम तीनों वही भगवान हैं 

चाहो जिन्हे तुम पुत्र रूप में। 


तुम्हारे यहाँ हमारे ही अंश स्वरुप 

उत्पन्न तीन पुत्र अब होंगे 

तीनों जगत विख्यात होंगे वो 

तुम्हारे यश का विस्तार करेंगे। 


मैत्रेय जी कहें अब मैं वर्णन करूँ 

अंगिरा ऋषि की संतानों का 

चार पुत्री हुईं पत्नी श्रद्धा से 

सिनीवाली, कुहू, अनुमति और राका। 


दो पुत्रों ने भी जन्म लिया 

उत्थप जी और बृहस्पति जी थे 

पुल्सत्य और पत्नी हविर्भू से 

अगस्त्य और विश्वा हुए थे। 


विश्वा मुनि पत्नी इडविडा से 

यक्षराज कुबेर का जन्म हुआ 

दूसरी पत्नी केशिनी से 

रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण का। 


महर्षि पुलह की स्त्री गति से 

तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे 

कर्मश्रेष्ठ, वरियन और सहिष्णु 

ये उन तीनों के नाम थे। 


प्रजापति क्रतु की पत्नी क्रिया से 

जन्म लिया साठ हजार ऋषिओं ने 

चित्रकेतु अदि सात ब्रह्मऋषि 

हुए वशिष्ठ पत्नी अरुंधति के।

 

अथर्वा मुनि की पत्नी चित्ति से 

पुत्र हुआ दधीचि नाम का 

भृगु की भार्या ख्याति से 

पुत्र धाता और विधाता। 


श्री नाम की कन्या भृगु की 

मेरु ऋषि की भी दो कन्याएं 

आपत्ति और विपत्ति नाम था 

धाता, विधाता को व्याही वो जाएं। 


उनके उनसे दो पुत्र हुए 

मर्कण्ड और प्राण नाम के 

मर्कण्ड से फिर मार्कण्डेय और 

प्राण से मुनीश्वर वेदशिरा हुए। 


कवि नामक भृगु के एक पुत्र 

उनका पुत्र शुक्राचार्य हुआ 

इन सब मुनिवरों की संतानों ने 

सृष्टि का विस्तार था किया। 


ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष जो 

प्रसूति से विवाह किया उन्होंने 

उनकी फिर आगे संतानें 

दोनों की हुईं सोलह कन्याएं। 


तेरह कन्याओं का विवाह धर्म से 

एक का विवाह अग्नि से हुआ 

एक का समस्त पितरों से 

एक का विवाह शंकर जी से हुआ। 


श्रद्धा, मैत्री, दया, शांति 

तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति 

बुद्धि, मेघा, तितिक्षा, लज्जा 

और मूर्ती, ये पत्नियां धर्म कीं। 


श्रद्धा से शुभ,मैत्री से प्रसाद 

दया से अभय, सुख शांति से 

तुष्टि से मोद, पुष्टि से अहंकार 

क्रिया से योग, दर्प उन्नति से। 


बुद्धि से अर्थ, मेघा से स्मृति 

तितिक्षा से क्षेम, लज्जा से विनय हुए 

धर्म की ये सब संतानें हुईं और 

मूर्ति से नर नारायण हुए। 


वो दोनों भगवन का रूप थे 

स्त्रोत्रों द्वारा देवता स्तुति करें 

प्रभु के साक्षात् दर्शन कर 

प्रणाम करें, उनकी पूजा करें। 


गन्धमादन पर्वत चले गए दोनों वो 

भगवान हरी का अंश थे दोनों 

कृष्ण, अर्जुन के रूप में अब है 

धरती पर अवतीर्ण ये दोनों। 


अग्निदेव की पत्नी स्वाहा ने 

तीन पुत्र उत्पन्न किये थे 

पावक, पवमान और शुचि 

इन तीनों के नाम पड़े थे। 


हवन किये हुए पदार्थों का 

ये तीनों भक्षण करते थे 

इन तीनों से पैंतालीस प्रकार के 

और अग्नि उत्पन्न हुए थे। 


ये ही अपने तीन पिता और 

पितामह के साथ उन्चास अग्नि हैं 

इनकी ही ब्राह्मण यज्ञ कर्मों में 

उनचास आग्नेय ईष्टियां करते हैं। 


अग्निष्वात्त,बर्हिषद, सोमप, अजपय

साग्निक, निरग्निक पितृ सब ये 

दक्षपुत्री सनधा इनकी पत्नी 

धरनी, वयुना दो कन्याएं। 


महादेव की पत्नी सती थीं 

क्रोधवश था शरीर त्याग दिया 

क्योंकि उनके पिता दक्ष ने 

शिवजी से प्रतिकूल आचरण किया। 


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