इश्क में केवल आशिक
इश्क में केवल आशिक
इश्क में केवल आशिक, नहीं होता है,
हुस्न भी आंसुओं में दामन भिगोता है,
इश्क सुबक सुबक कर, कभी रोता है,
अपनी तमाम जिंदगी, यादों में खोता है।
इश्क में केवल आशिक, जिम्मेदार नहीं,
हुस्न भी दोषी होता उतना ही मानो सही,
इजहार करते हैं कभी दोनों ही मिलकर,
प्यार परवान चढ़ जाता है एकदम वहीं।
इश्क में केवल आशिक ही नहीं डरता,
हुस्न भी बाजी लगा जान से ही मरता,
प्यार की बातें, आशिक ही नहीं करता,
आशिक के डर को तो, हुस्न भी हरता।
इश्क में केवल आशिक को,दोषी मानते,
हकीकत हुस्न की जग के जन भी जानते,
ताली एक हाथ से नहीं दोनों हाथ बजती,
दूल्हे के संग संग बारात भी सदा सजती।
इश्क में केवल आशिक, न आ
ये समाने,
गिर गया कभी, हुस्न आता देखा है थामने,
दोनों ही कभी हँसते रहते तो कभी रोते है,
कभी आनंदित होते घोड़े बेचकर सोते हैं।
इश्क में केवल आशिक,बदनाम नहीं होता,
कभी हुस्न भी अपने भाग्य किस्मत कोसता,
धोखा नहीं देना चाहते, दोनों होते खुशदिल,
कभी दोनों के गर्दिश सितारे दर्द में बोलते।
इश्क में केवल आशिक, ही नहीं विचारता,
कभी हुस्न दर्द की जिंदगी से जीवन हारता,
कभी दोनों की मस्ती, सिर चढ़कर बोलती,
कभी दोनों की चुप्पी, भेद जहां के खोलती।
इश्क में केवल आशिक, नहीं कदम बढ़ाता,
हुस्न को देख लो, कभी नहीं पीछे पैर हटाता,
एक गाड़ी हुस्न और इश्क की जहां में चलती,
प्यार की गाड़ी चलती, कई दिलों को खलती।।