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Damyanti Bhatt

Classics

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Damyanti Bhatt

Classics

Untitled

Untitled

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कांच के कंगन

उतारते पहनते

ज़ख्म लग जाते हैं

तब भी

सुहागिन होने और अपनी निष्ठा

दिखाने के लिए

सच्चा प्रेम 


साबित करने के लिए

कि जितना चटक रंग का

सिंगार होगा

प्रेम उतना ही गहरा होगा

और जनमौं तक का साथ होगा

पहन लेना पड़ता है

अपनी देह पर


अपनी देह की

पवित्रता का प्रमाण देने को

जिसे यह प्रमाण चाहिए

क्या उसने अपने हृदय की

पवित्रता का प्रमाण दिया


प्रेम प्रमाण कब मांगता

इसीलिए प्रेमिकाओं को

कोई सिंगार और व्रत नहीं करने पड़ते


अपनी देह की प्रमाणिकता

भी नहीं देनी पड़ती

बस मैं प्रेम करती हूं

और उसे मिल जाता है प्रेम

 उसको सीने से लगा लिया जाता है

उसके कजरारे नैनों में देख कर प्रेम


और जो सोलह सिंगार करती

व्रत रखती

मन्नतौं के धागे बांधती

अपने शरीर पर

गुदवा देती

पति का नाम

जिस पर पति का मालिकाना हक है


पाने को अपने हिस्से का

अगाध प्रेम

देह को पवित्र रख कर

हार जाती है

आरोपित होती है


देह की पवित्रता को

प्रमाणित किया जा सकता है

लेकिन मन की पवित्रता का

 न तो पैमाना होता

न प्रमाण


एक स्त्री हमेशा

छुपाती है

अपनी इच्छा

अपनी तकलीफ।


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