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Rishab K.

Abstract Classics Inspirational

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Rishab K.

Abstract Classics Inspirational

कहां जाओगे तथागत !

कहां जाओगे तथागत !

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जिस राज्य के लिए

पुत्र ने हत्या की

पिता की

पिता ने संहारे पुत्र


भाई ने भाइयों के

क़त्ले आम किए

अनगिन जघन्य

घृणित काम किए


पिता रूपी राजा ने

प्रजारूपी विधर्मी संतानों को

जीवित भुनवा दिया

सारी नैतिकता को

दीवार में चुनवा दिया


औरतें केशों से घसीट कर

दरबारों में निर्वस्त्र की गईं

मूल्य सिद्धांत दर्शन विचार

आखेट में मारे गए


जिस राह

एक नहीं सारे गए

उस राज्य को 

मैले वस्त्र की तरह

सूखे पत्र की तरह

निर्जीव देह की तरह

त्याग कर


तुम कहाँ जाओगे

तथागत !

तुम्हारी राह में

घात लगाए बैठे हैं

ख़ूँख़्वार दाँत

धारदार नाख़ून


कांतारों पर पहरे हैं

सियासत के


गहरे हैं घाव

वनों की छाती पर

वनवासियों की थाती पर

अश्वारोही सवार हैं

तुम कहाँ जाओगे!

तथागत


बलात्कार के बाद

पूरी निर्ममता से

मार डाली गई सुजाता

नक्सली करार देकर


जब तुम भूख से

होओगे अचेत

तुम्हें कौन खिलाएगा खीर


पाखंडी संन्यासियों से

कौन बचाएगा तुम्हें

अब वे मदमायी सत्ता के

जानलेवा नशे में चूर

बौराए हुए हैं


विनाश के बादल

पूरी सृष्टि पर गहराए हुए हैं


तुम कहाँ जाओगे

अमिताभ!

तुम कहाँ पाओगे

बोधिवृक्ष

वे तो विकास की भेंट चढ़ गए


तुम्हारे भिक्षु

बंदूकों के साये में

करुणा का पाठ पढ़ रहे

सारनाथ के मृगदाव

मृगों से ख़ाली हो चुके हैं


यहांँ तुम किसे उपदेश करोगे

तुम्हारी भाषा समझ सके

ऐसा कोई नहीं बचा

एक ही भाषा बची है अब

दांँतों और नाख़ूनों की


धतूरा खिलाकर

खुला छोड़ दिया गया है

ख़ूंँख़्वार भेड़ियों को


खंडहर स्तूपों की राख

झर झरकर पसर रही है

पूरी कायनात में

अस्थियांँ तुम्हारी

खुली पड़ी हैं

संँवलाते आसमान के नीचे


तुम्हारे लिए

कहीं भी जगह नहीं बची 


न इस देश में

न बारूदों से पटी

इस धरती पर


यह भी तो नहीं कह सकता

कि हमारे दिल में 

आकर समाधि लगाओ


यहाँ भी

वासनाओं के चीत्कार

नफ़रतों के हाहाकार

धधक रहे हैं


तुम्हारी करुणा

भस्म हो जाएगी तथागत!


मैं नहीं जानता

कि तुम कहाँ जाओगे

कहांँ मिलेगा ठौर तुम्हें

इस चौमासे में


पर एक बिनती है

दोनों हाथ जोड़कर 

जहाँ भी जाओ

वहाँ से लौटकर मत आना


यह धरती

अब तुम्हारे लायक नहीं रही !


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