रामायण-श्री राम की अमर कहानी
रामायण-श्री राम की अमर कहानी
अथाह प्रेम की साक्षात मूर्ति
बात श्री सिया-राम के प्रेम की क्या करूं
जन्म-जन्म के प्रेमी दोनों
दो शरीर और एक जान कहूं।।
एक ईश्वर एक शक्ति
मिलकर करते वो ब्रह्मण्ड निर्माण
जन्म-सृजन है जिनका कार्य
पालन-संहार है उनके काम।।
प्राण छोड़ते पिता प्रेम में
माता प्राण त्यागती ले बहू सीता का नाम
राज करता भाई उनके नाम पर
भरत, महल-सूख-सुविधाओं सब करके त्याग।।
हनुमान के प्रभु राम प्यारे
है संग्रीव के मित्र की तुलना क्या
निषादराज से अटूट रिश्ता
वर्णन भाव राजा विभीषण का करूं मैं क्या।।
सुख-सुविधा संग छोड़ चले सब
सेवा राम का कर्म रहा
हर परेशानी को खुद पर झेलते
चौदह वर्ष जो नींद भूख-प्यास सहा।।
तड़पते-बिलखते श्री राम है मिलते
जब अलग करता रावण सीता-राम
अशोक वाटिका में जपती मिलती
सीता जी भूखी-प्यासी श्री राम का नाम।।
अग्नि परीक्षा श्री राम है लेते
देख साधारण मनुष्य सब हैरान
हर कदम पर जो खुद परीक्षा देते
उनके दुख का न किसी को भान।।
कलंक के डर से माता छोड़ते
छोड़े सुख-चैन, धन-वैभव भी साथ
भू-धरा को मान बिछौना
सदा करते रहे सीता का ध्यान।।
बिन अर्धांगनी जग में यज्ञ न होते
सोने की मूर्ति रखते पास
संपन्न कराते सभी धर्म कार्य
हमेशा उस मूर्ति को अर्धांगनी सीता मान।।
वनदेवी जब वो कहलाती
हमेशा मर्यादा पुरुषोत्तम की करती बात
बाल-बच्चों को गा सुनाती
महिमा प्रभु की वो दिन-रात।।
सीता का दुख तो दुनियां देखी
क्या श्री राम के अंतर्मन का उनको ज्ञान
सुख के दिन साथ बिता सके
रोज लोग परीक्षा लेते नए अड़ंगे डाल।।
प्रश्न चिह्न लगाती जिनके हर कर्म पर
एक दिन उनकी ही संतान
क्या गुजरी होगी उनके दिल पर
रहा सुख से वंचित जो इंसान।।
अमर प्रेम की अमर कहानी
प्रेम-त्याग, बलिदान सब एक समान
प्रेम में डूबे मात-पिता संग भाई-बंधू
वही रामायण कहलाती श्री सिया-राम का धाम।।
