STORYMIRROR

chandraprabha kumar

Classics

4  

chandraprabha kumar

Classics

उमा आराधना

उमा आराधना

2 mins
257

        

जहॉं हिमालय का पवन

भागीरथी के प्रपातों से

जलकणों को लेकर बहता है,

जिससे देवदारु के वृक्ष 

रह रहकर कॉंप उठते हैं

मोरों के पंख बिखर जाते हैं। 


जहॉं इस हिमालय के 

ऊँचे सरोवरों के कमलों को

नीचे से उगता हुआ मार्तण्ड

अपनी उठती हुई किरणें के,

स्पर्श से विकसित करता है

 वह हिमालय यज्ञों का स्थान है। 


मेरु के मित्र हिमालय ने 

अपने वंश की वृद्धि के लिये 

मनः संकल्प से उत्पन्न हुई कन्या

मेना से विधिपूर्वक विवाह किया,

उसने पुत्र मैनाक को जन्म दिया

जिसने समुद्र से मित्रता की। 


दक्ष प्रजापति की कन्या

महादेव की पूर्वपत्नी सती,

जिसने पिता से अपमानित हो

योगबल से प्राणत्याग दिये थे,

फिर जन्म लेने के लिये

मेना के गर्भ में आ प्रविष्ट हुई। 


उस कन्या के जन्म के दिन 

आकाश निर्मल ,दिशायें स्वच्छ थीं,

आकाश से पुष्पवृष्टि हुई

चराचर आनन्द से भर उठे। 

कन्या प्रभामंडल से देदीप्यमान थी

चन्द्रमा की चॉंदनी के समान रूप था। 


उसका नाम पार्वती ,गौरी ,उमा पड़ा,

जैसे उज्जवल शिखा से दीप,

त्रिपथगा से स्वर्ग - मार्ग,

विशुद्ध वाणी से विद्वान

शोभित और पवित्र होता है

हिमालय उस कन्या से शोभित हुआ। 


तूलिका से चित्र के समान

रवि किरणों से कमल के समान

नवयौवन से वह निखर उठी। 

उस अनिंद्य सुन्दरी को बाद में

महादेव ने अपने अंक में स्थान दिया 

जिसकी अन्य नारी कामना भी नहीं कर सकती। 


वह शिरीष पुष्प से भी सुकुमार थी

वायु- विकम्पित नीलकमलों के समान

बड़े बड़े नेत्र थे, और बोलने से

स्वर से मानों अमृत झरता था।

मंत्रों द्वारा पवित्र हुई आहुति को

अग्नि के अतिरिक्त कौन ग्रहण कर सकता है। 


देवताओं ने निश्चय किया ,

पर्वतराज की पुत्री गौरी का विवाह

महादेव से करवाया जाय,

क्योंकि त्रिलोक में कोई नारी

शिव पत्नी बनने में समर्थ नहीं थी, 

प्रेम तप द्वारा गौरी ही 

शिव की अर्द्धांगिनी बनेगी

ऐसा नारद ने हिमवान से कहा। 


सुदर्शना सती के देहत्याग से

पशुपति आसक्ति विहीन थे, 

जहॉं गंगा की जलधारा

देवदारु तरुओं को सींचती बहती थी

तपस्या फल के दाता होते हुए भी

शिव तपस्या में लीन थे। 


अपनी पुनीत कन्या को

पर्वतराज हिमालय ने 

शिव आराधना का आदेश दिया,

सुकेशिनी पार्वती नियम पालन कर

पूजा के लिये फूल चुनती

महादेव की सेवा में लीन हुई। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics