एक चीर के मूल्य में केशव
एक चीर के मूल्य में केशव
चला कर सुदर्शन चक्र जब, किया कृष्ण ने शिशुपाल का वध,
चोट लगी श्री कृष्ण को, हो गई थी उनकी उँगली आहत।
बहने लगा खून उँगली से, देख यह द्रौपदी को हो रही पीड़,
फाड़ साड़ी का पल्लू, बाँध दिया कृष्ण की उँगली पर चीर।
द्रौपदी के इस सेवा भाव से, अभिभूत था कृष्ण का अंतर्मन,
मुश्किल वक़्त में काम आने का, दे दिया द्रौपदी को वचन।
इसी प्रसंग से शुरू हुआ, रक्षा बंधन का त्यौहार एक पावन,
भाई की कलाई में बाँधती धागा, भाई देता सुरक्षा का वचन।
महाभारत की भरी सभा में, हो रहा था द्रौपदी का चीरहरण,
पुकार रही थी श्री कृष्ण को, देखो क्या कर रहा है दुःशासन?
अग्नि कुंड में अवतरित हुई जो, द्रौपदी रूप की थी रानी,
पांडवों की ब्याहता थी वो, इंद्रप्रस्थ की द्रौपदी थी रानी।
द्युत में हार गये पांडव उसे, किया दुर्योधन ने घोर अपमान,
खींच लाया दुःशासन उसे, सभा में मर्दन हो रहा था मान।
वस्त्र संभाले खड़ी थी द्रौपदी, नियति से वो लड़ रही थी,
न झुकी वो कौरवों के सामने, जितना सकी अडिग खड़ी थी।
धिक्कार रही थी राजसभा को, आँखों से आँसू बह रहे थे,
मुश्किल की इस घड़ी में होंठ, “कान्हा, कान्हा” कह रहे थे।
हो रहा अपमान मेरा यूँ सभा में, आ जाओ ए कृष्ण सुनो,
पांडव हारे द्युत में मुझे, न पूछा मुझे, गजब ये रीत सुनो।
कहाँ छुपे हो कृष्ण कन्हैया, अब तो है बस तुम्हारा सहारा,
आओ बचा लो अपनी बहन को, सभा मूक देख रही नजारा।
सुन द्रौपदी का आर्तनाद, माँ वसुंधरा दुःख से रो रही थी,
गिरी थी मर्यादा आज धरा पर, पर शर्म सबकी सो रही थी।
सुन ली द्रौपदी की आवाज़, अवतरित हुए तब मधुसूदन,
चीर खींच हांफ गया दुःशासन, न कर सका सतीत्व हनन।
वचन की थी एक मर्यादा, कृष्ण ने बचाई बहन की मर्यादा,
एक चीर के मूल्य में केशव ने, निभाया चीर से अपना वादा।
